शनिदेव को मिला था प्रतापी होने का वरदान एक बार भगवान सूर्यदेव पत्नी स्वर्णा से मिलने आए. सूर्यदेव के तप और तेज के आगे शनिदेव महाराज की आंखें बंद हो गई. और वे उन्हें देख नहीं पाए. वहीं, शनिदेव की वर्ण को देख भगवान सूर्य ने पत्नी स्वर्णा पर शक करते हुए कहा कि ये मेरा पुत्र नहीं हो सकता. ये बात सुनते ही शनिदेव के मन में सूर्यदेव के लिए शत्रुभाव पैदा हो गए. जिसके बाद उन्होंने भगवान शिव की कठिन तपस्या करनी शुरू कर दी. शनिदेव की कठिन तपस्या के बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा. इस बात पर शनिदेव ने शिवजी से कहा कि सूर्यदेव मेरी मां का अनदार और प्रताड़ित करते हैं. जिस वजह से उनकी माता को हमेशा अपमानित होना पड़ता है. उन्होंने सूर्यदेव से ज्यादा शक्तिशाली और पूज्यनीय होने का वरदान मांगा. शनिदेव की इस मांग पर उन्होंने शनिदेव को नौ ग्रहों का स्वामी होने का वरदान दिया. उन्हें सबसे श्रेष्ठ स्थान की प्राप्ति हुई. इतना ही नहीं, उन्हें ये वरदान भी दिया गया कि सिर्फ मानव जगत का ही नहीं बल्कि देवता, असुर, गंधर्व, नाग और जगत के सभी प्राणी उनसे भयभीत रहेंगे. जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल। दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥ जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज। करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥