सूर्यदेव के पुत्र शनिदेव को न्याय और कर्म का देवता माना गया है. शनिवार, शनि प्रदोष व्रत और शनि अमवस्या ऐसे अवसर हैं जब शनिदेव को प्रसन्न किया जा सकता है. व्यक्ति के अच्छे-बुरे कर्मों का फल देना शनिदेव के हाथ में होता है. किसी भी व्यक्ति की कुंडली में शनि की दशा खराब होना सुनकर ही व्यक्ति घबरा जाता है. 9 ग्रहों में से शनि को गुस्सैल और क्रूर माना गया है. लेकिन ऐसा हर किसी के साथ नहीं होता. शनि जिस पर अपनी कृपा बरसाते हैं उसे धन की कमी नहीं होने देते. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि महाराज किसी भी राशि में 30 दिन से ज्यादा नहीं रहते. भगवान शिव ने न्यायधीश का काम नौ ग्रहों में से शनिदेव को सौंपा है. शनिदेव की कथा जिसे पढ़कर या सुनकर आप भी पापों से मुक्त हो जाएंगे.शनिदेव के जन्म की कथा पुराणों में शनिदेव के जन्म की कई कथाएं मौजूद हैं, जिसमें सबसे अधिक प्रचलित कथा स्कंध पुराण के काशीखंड में मौजूद है. कथा के अनुसार सूर्यदेव का विवाह राजा दक्ष की पुत्री संज्ञा के साथ हुआ था. सूर्यदेव और संज्ञा को तीन पुत्र वैस्वत मन, यमराज और यमुना का जन्म हुआ. सूर्यदेव का तेज काफी अधिक था, जिसे लेकर संज्ञा काफी परेशान रहती थी. वे सूर्यदेव की अग्नि को कम करने का उपाय सोचती रहती थी. सोचते-सोचते उन्हें एक उपाय सूझा और उन्होंने अपनी एक हमशक्ल बनाई, जिसका नाम उन्होंने स्वर्णा रखा. स्वर्णा के कंधों पर अपने तीन बच्चों की जिम्मेदारी डालकर संज्ञा जंगल में कठिन तपस्या के लिए चली गई.
संज्ञा की छाया होने के कारण सूर्यदेव को कभी स्वर्णा पर शक नहीं हुआ. और स्वर्णा एक छाया होने के कारण उसे भी सूर्यदेव के तेज से कोई परेशानी नहीं हुई. उधर संज्ञा तपस्या में लीन थीं, वहीं सूर्यदेव और स्वर्णा से तीन बच्चे मनु, शनिदेव और भद्रा का जन्म हुआ. आगे जानने के लिए बटन दबाए